Musafir
मौसम के बदलते हर रूप में
और बारीशों की हर बूँद में
हर ख्वाहिश में
हर चाह में
तुम ज़िंदगी की हर राह में
क्यूँ बन गया मैं मुसाफिर
तेरे प्यार में
कब तक जियुं..
तू बता दे,
तेरे इंतेज़ार में... ओ...
शीशे में दिखती तेरी परछाईयाँ
कहती हैं मुझसे ये तनहाईयाँ
हो.. शीशे में दिखती तेरी परछाईयाँ
कहती हैं मुझसे ये तनहाईयाँ
हर सफ़र में साथी तेरा साथ हो
यह आरज़ू मुझे दिन रात हो
हर सफ़र में साथी तेरा साथ हो
यह आरज़ू मुझे दिन रात हो
ना दिन ढले ना कभी ये शाम हो
मैं भीग जौन कभी ऐसी बरसात हो
क्यूँ बन गया मैं मुसाफिर
तेरे प्यार में
कब तक जियुं..
तू बता दे,
तेरे इंतेज़ार में... ओ