Ek Pyar Ke Bandhan Ki Khatir
एक प्यार के बंधन की खातिर
मैं तो सारे बंधन तोड़ चली
जिन सखियो के संग खेली थी
उन सखियो से मुख मोड़ चली
मेरी माँग मे भर दो रंग सखी
मुझे जाना है पी के संग सखी
पारितम का साढ़ेसा आ पहुँचा
बाबुल की नगरिया छ्चोड़ चली
मेरे घुन अवघून बिसरा दिए जा
जाके पार गले से लगा लीजो
मैं लाज़ का गुणगता ओढ़े हुए
पग चूम चली हाथ जोड़ चली