Aane Ko Hai Khaab
Yashwardhan Goswami
आने को है ख्वाब
ठहरा दी हैं नींदें
आने को है ख्वाब
रातों ने दिन के बिस्तर सांटे हैं
पलकों को उघड़ा
जाने कब से जागे हैं
आने को है ख्वाब
बाकी हैं नींदें
आने को है ख्वाब
जाली है, रखी है
आँच है जो चुलहो की
तापी सी रखी हैं यादें
सुबह की आस में
रातें साथ जागती थी
रोज़ इंतेज़ार में
चाँद भी कूतरती थी
बाकी हैं सारी (बाकी हैं)
खाबों की
पारी आधी रात जल गयी
नींदें थी जो पिघल गयी
हा
आने को है खाब
ठहरा दी हैं नींदें
आने को है ख्वाब
इंतेज़ार है
इंतेज़ार है
इंतेज़ार है
हा
इंतेज़ार है
है