Nazdeekiyaan
Amitabh Bhattacharya, Amit Trivedi
रातों के जागे सुबह मिले हैं
रेशम के धागे यह सिलसिले हैं
लाजमी सी लगने लगी है
दो दिलों की अब नजदीकियाँ
हम्म दिखती नहीं पर हो रही है नजदीकियाँ
दो दिल ही जाने लगती हैं कितनी महफूज नजदीकियाँ
जरिया हैं ये आँखें जरिया
छलकता है जिनसे एक अरमानों का दरिया
आदतें हैं इनकी पुरानी
अनकही सी कह दें कहानी
परछाईयाँ दो जुड़ने लगी हैं
देखो हवा में उड़ने लगी हैं
पंख जैसी लगने लगी हैं
दो दिलों की अब नजदीकियाँ