Aawaaz
मैं हूँ, तुम हो, रात है और ख़ामोशी
मैं हूँ, तुम हो, रात है और ख़ामोशी
मैं हूँ, तुम हो, रात है और ख़ामोशी
कानों में आवाज़ का रस तुम घोल रही हो
कोयल बोल रही है या तुम बोल रही हो?
मैं हूँ, तुम हो, रात है और ख़ामोशी
शाम तेरी आवाज़ में खोई, खोई सी
मौसम पल-पल तेरे सपने बुनता है
बहते पानी के मीठे हलकारों में
दिल मेरा आवाज़ तुम्हारी सुनता हैं
कलियाँ खिलती हैं या तुम लब खोल रही हो?
कोयल बोल रही है या तुम बोल रही हो?
मैं हूँ, तुम हो, रात है और ख़ामोशी
यूँ तेरे होंठों से लफ़्ज़ निकलते हैं
काली रात में जैसे चाँद निकलता है
साज़ अधुरा है तेरी आवाज़ बिना
नग़्मा तेरा हाथ पकड़ कर चलता है
तुम अनमोल हो और सदा अनमोल रही हो
कोयल बोल रही है या तुम बोल रही हो?
मैं हूँ, तुम हो, रात है और ख़ामोशी
तू ख़ुशबू सी बिखरी है अतराफ़ मेरे
मैं दीवाना तेरे सुरों पे मरता हूँ
इससे बढ़कर और मोहब्बत क्या होगी?
मैं तेरी आवाज़ को सजदा करता हूँ
तुम मुझमें छुप कर कुछ मुझसे बोल रही हो
कोयल बोल रही हैं या तुम बोल रही हो?
मैं हूँ, तुम हो, रात है और ख़ामोशी
मैं हूँ, तुम हो, रात है और ख़ामोशी
कानों में आवाज़ का रस तुम घोल रही हो
कोयल बोल रही है या तुम बोल रही हो?
मैं हूँ, तुम हो, रात है और ख़ामोशी