Kaate Na Kate

Alimchand Prakash

वक़्त के चक्रवयहुव में
पनपता है कल, कल एक कल्पना
आज अभी यह पल एक एहसास,
हम सिर्फ़ एहसास

काँटे ना कटे रतियाँ मुआः
कब उगलेगा चाँद आग
काँटे ना कटे रतियाँ मुआः
कब उगलेगा चाँद आग

अंधेरोन का बनाकर बिच्चोना
अंधेरोन का बनाकर बिच्चोना
ओढकर करवतों की चादर
चुभाती सुइयों से खाबों पे रू
चुभाती सुइयों से खाबों पे रू
हर पल गुज़रे हैं जैसे सदी
गहते होते जावे यह दाग,
ओ बैरी काँटे ना कटे रतियाँ
मुआः कब उगलेगा चाँद आग

अखियों से आँसू उतरते नही
अखियों से आँसू उतरते नही
खाली होकर सब्र की गागरी
रात रात भर जियरा परोसू
रात रात भर जियरा परोसू,
ढुंदले होते जाए सितारे
भुझते जावे सारे चराग़,
ओ बैरी काँटे ना कटे रतियाँ
मुआः कब उगलेगा चाँद आग

चाँद बटोरे है गिन गिन कल
चाँद बटोरे है गिन गिन कल
भर गयी रैन से लिपटी गठरी
एब्ब तो बोझ यह धो ना साकु मैं
एब्ब तो बोझ यह धो ना साकु मैं
मुझको बालमा और ना तरसा
बीतें रातें जाग जाग,
ओ बैरी काँटे ना कटे रतियाँ
मुआः कब उगलेगा चाँद आग

Curiosités sur la chanson Kaate Na Kate de Rekha Bhardwaj

Qui a composé la chanson “Kaate Na Kate” de Rekha Bhardwaj?
La chanson “Kaate Na Kate” de Rekha Bhardwaj a été composée par Alimchand Prakash.

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