Fikar
मेरी किताब-ए-इश्क़ में
एक जिक्र है तेरा
मेरी किताब-ए-इश्क़ में
एक जिक्र है तेरा
ना जाने दिल में अभी भी
क्यूँ फिक्र है तेरा
ना जाने दिल में अभी भी
क्यूँ फिक्र है तेरा
यह भी सच है के अब
कभी ना आएँगे वो दिन
यह भी सच है जी ना पाऊंगा
आख़िर तुम बिन
कभी एक बार मैं
उन लम्हों को जी पाऊ
तेरे पहलू में रख के
सर जो वो मिलता था सुकून
मेरी किताब-ए-इश्क़ में
एक जिक्र है तेरा
मेरी बातों पे मुस्कुराना वो तेरा अक्सर
कभी किसी गम में डूब जाना वो तेरा अक्सर
वो तेरा दूर से मिलने आना है याद मुझे
मेरी बाहों में सिमट जाना है याद मुझे
मेरी किताब-ए-इश्क़ में
एक जिक्र है तेरा
तू मेरे सामने जो नज़रें झुकाया करती थी
दिल की कोई बात बोल भी ना पाया करती थी
वो तेरी आँख से छलका आँसू
जो मैने रोका था
रोते रोते तेरा हसना हसीन धोखा था
मेरी किताब-ए-इश्क़ में
एक जिक्र है तेरा
फिर एक सुबह तेरा मुझसे वो दूर हो जाना
देखते देखते किसी धुंद में वो खो जाना
मेरी ग़लती तो बता दे तू खुदा के लिए
माफियाँ माँगता हूँ अब भी जिस ख़ता के लिए
मेरी किताब-ए-इश्क़ में
एक जिक्र है तेरा
मेरी किताब-ए-इश्क़ में
एक जिक्र है तेरा