Pragati Ki Raah Dikhayee
आ आ आ आ आ आ आ
आ आ आ आ आ आ आ
ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म
ह्म ह्म ह्म ह्म ह्म
प्रगति की राह दिखाई तुमने ओ बाबा साहिब
प्रगति की राह दिखाई तुमने ओ बाबा साहिब
जीने की चाह बढ़ाई तुमने ओ बाबा साहिब
तुमने ओ बाबा साहिब
पतन के हमारे ज़िम्मेदार थी यहाँ की कई प्रथा
अधिकारों की कमी से बढ़ी निरंतर हमारी व्यथा
ये समझा वो ही जिसका था हृदय एक पिता समान
लड़कर विषम रूढ़ियों से सँवरना हमें चाहा
ज़िद से हक़ हमको दिलाया तुमने ओ बाबा साहिब
तुमने ओ बाबा साहिब
आ आ आ आ आ आ
वारिस ना समझे हमें पराया धन समझे
संपत्ति में भी ना हिस्सा कोई इंसाँ ही ना समझे
पिता पुत्र और पति पर निर्भर ये जीवन कटे
ललकारना सिखाया तुमने ओ बाबा साहिब
ललकारना सिखाया तुमने ओ बाबा साहिब
तुमने ओ बाबा साहिब
प्रगति की राह दिखाई तुमने ओ बाबा साहिब
जीने की चाह बढ़ाई तुमने ओ बाबा साहिब
तुमने ओ बाबा साहिब