Zinda

Ali Abbas Zafar

ख़ाक से बना हूँ मैं, ख़ाक ही बन जाऊँगा
सीने में लेके आग मैं वक्त से लड़ जाऊँगा
ख़ाक से बना हूँ मैं, ख़ाक ही बन जाऊँगा
सीने में लेके आग मैं वक्त से लड़ जाऊँगा
दिल के भँवर में है डूबा मेरा सफ़ीना, हाँ सफ़ीना
हो, दुआ है मेरी रब से कि थामे मुझको यूँ ही रहना
यूँ ही रहना, रहना
ज़िंदा हूँ मैं तुझमें, तुझमें रहूँगा ज़िंदा
तोड़ के सब ज़ंजीरें मैं आज़ाद परिंदा
ज़िंदा हूँ मैं तुझमें, तुझमें रहूँगा ज़िंदा
तोड़ के सब ज़ंजीरें मैं आज़ाद परिंदा
ख़ाक से बना हूँ मैं, ख़ाक ही बन जाऊँगा
सीने में लेके आग मैं वक्त से लड़ जाऊँगा
ख़ाक से बना हूँ मैं, ख़ाक ही बन जाऊँगा
सीने में लेके आग मैं वक्त से लड़ जाऊँगा
ज़िंदा हूँ मैं तुझमें, तुझमें रहूँगा ज़िंदा
तोड़ के सब ज़ंजीरें मैं आज़ाद परिंदा
ज़िंदा हूँ मैं तुझमें, तुझमें रहूँगा ज़िंदा
तोड़ के सब ज़ंजीरें, मैं आज़ाद परिंदा

Curiosités sur la chanson Zinda de Vishal Dadlani

Qui a composé la chanson “Zinda” de Vishal Dadlani?
La chanson “Zinda” de Vishal Dadlani a été composée par Ali Abbas Zafar.

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