Aazma Le

Talhah Yunus

खुद से भी मिला करें
सर उठा के चला करें
खुदा के तरीके हम नहीं समझ सकते
हम उससे क्या गिला करें

दुनिया संग दिल बनती मेरी दुश्मन
हम कम-अज़-कम खुद से ही सुलाह करें
कम बोलै करें ज़्यादा सुना करें
रब देता है माफ़ी फिर गुनाह करें

ये ताकात ठिकाने बदल सकती
क़लम की ताक़त तखत भी पलट देती
लिखारी जान लेवा हूँ
पर लिखाई ही रोज़ अब जीने का सबब देती

वरना ज़िन्दगी मौके तो कम देती
महफिलों में तो रौनक भी हमसे थी
इधर हसल करते करते पूरा दिन गया
उर्दू रैप में
उर्दू रैप मेरे बिन क्या

फैक्ट्स हैं ये फ्लेक्स नहीं
मुझे ग़ालिब जैसे लिखने का फैज़ नहीं
वो हबीब है मेरे तो मुझसे दूर क्यूँ
वो हरीफ़ है मेरे तो उनकी खैर नहीं

आज कल भेजे मुझे टेक्स्ट सब
व्हाट्सप्प पे दे वन्ना नो ह्वटस अप
मेरी ज़िन्दगी कितनो की हसरत
मैं मिसाल मेरा नाम लेते मसलन

दिल फेंक के ना दिल तोड़
बिलबोर्ड पे अब दिखे शकल इनको
मेरा बैंक बैलेंस लगता था पिन कोड
अब सफर देख सिर्फ सिफर गिन तू

ऐय, आइ बिलोंग हेयर
जाने का मूड नहीं है
हेडलाइनर्स हम
तेरी कोई न्यूज़ नहीं है

क्या वो सुनते पर करते महसूस नहीं ये
वादे टूटे पर टूटे असूल नहीं ये

जो भी हसल थी गयी वो फ़ुज़ूल नहीं है
लेकिन दुनिया तो फानी है, भूल नहीं ये
हम फ़ना हुए इस फनून की खातिर
पागलपन की हद्द तक जूनून भी है

तुम सुभ रख लो
मैं शब रखता हूँ
मैं जलवा जलाल और कर्ब रखता हूँ
इस ही दिल में रखता हूँ दर्द अपनों का
दिल का एक खाना अब सर्द रखता हूँ

ज़रूरत और ख़्वाहिश में फ़र्क़ रखता हूँ
हिसाब से लफ्ज़ो में हर्फ़ रखता हूँ
दिलदार हूँ मैं बड़ा पर दिल शिकस्ता हूँ
द जोक इज़ ऑन यू, मैं तुम पे हँसता हूँ

सेहमा था दिल पर था यकीन
लड़खड़ाते कदम पर रास्ता वोही
स्याही में डूबी ज़िन्दगी तो सीखा उड़ना तभी

आज़मा ले
ज़ख्मों को तू अपना ले
मशल तू दिल की जला ले
देखेगी दुनिया सभी

आज़मा ले
ज़ख्मों को तू अपना ले
मशल तू दिल की जला ले
देखेगी दुनिया सभी

बातें ये मुख़्तसर
मैं करता रहा मुस्तक़िल
नहीं होते मुश्तमिल
कहानी ये मुख़्तलिफ़

ये ख्वाब हुये मुन्तक़िल
काग़ज़ मुश्त’इल
उर्दू रैप और मैं उसका दिल
मुनाफ़िक़ जो मुनफा’इल

लोग मुंतज़िर थे इस क़दर
फिर किस का डर
हम मुंतखब
सब मुंतशिर
जब चुनते लफ्ज़

अब सुनते सब
ये खुश खबर
जो बद-नज़र
वो दरगुज़र

ये धुन पकड़
क्यूँ बे-सबर
क्यों बे-असर
तू ले सबक़

अब बेफिक्र ये शेर अर्ज़
मौत पर हो बेश्तर
हो देर जब तो बे-अदब
ये खेल अब

लगता नामुमकिन
मैं और मेरे ख्वाब
जीना चाहता हूँ मैं खुल के
क़लम ये आज़ाद
यहाँ निज़ाम सारे उलटे
लगी जैसे आग
शहर बारिशों में धुलते

दिल में हो दर्द
जब यहाँ कलाकार रुलते
ज़िन्दगी पहेली
बूझो जाने कितने उलझे
अंधेरे में चिराग
जैसे ही ये लहजा सुलगे
कटे मेरे पर
फिर भी जाने कैसे उड़ते

मुझे उड़ने दे
टूटे जो दिल वो आज जुड़ने दे
इन आँखों को खुशियों से भरने दे
अलफ़ाज़ मेरे दिल में उतरने दे

मंज़िल तो खुश हो ठहरने पे
ये घर मेरा जड़ को ना मरने दे
उभरेंगे सूरज ये ढलने दे
वक़्त लगे खुद को बदलने में

मगर वक़्त ये बदलता है
सफर ये तवील बेशक नंगे पैर चलता रह
चुभे पड़े कील
खुदा ज़ख्मों को भरते रह
खुद पे यकीन है तो
ज़माने से लड़ते रह

था ही ना कुछ खोने को
हर एक गुल्ली हर एक कोने को
मैं करता हूँ मुतासिर
अपनी बातों से चल होने दो

जो सो रहे थे सोने दो
मैं लिखने बैठा पौने दो
रातें ना मिली सोने को
इन ख्वाबों को पिरोने दो

देखा था जो कल वो तो
जी रहा हूँ आज मैं
लिखे असल हादसे
सारे बने हैं ख़ाक से
जाना है हमने ख़ाक में
ये इल्म मेरा बाँट दे
नहीं कोई बड़े बाप के
है फ़ख़र अपने बाप पे

आज भी इस शायरी में सादगी
जज़्बात भी और ये एहसास भी
है सबर का फल मीठा आज भी
ये हुनर दिलों की आवाज़ भी

सेहमा था दिल पर था यकीन
लड़खड़ाते कदम पर रास्ता वोही
स्याही में डूबी ज़िन्दगी तो सीखा उड़ना तभी

आज़मा ले
ज़ख्मों को तू अपना ले
मशल तू दिल की जला ले
देखेगी दुनिया सभी

आज़मा ले
ज़ख्मों को तू अपना ले
मशल तू दिल की जला ले
देखेगी दुनिया सभी

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