Gham Badhe Aate Hain Qatil Ki Nigahon Ki Tarah
हो ओ ओ ओ ओ ओ
ग़म बढ़े आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह
तुम छुपा लो मुझे, ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह
अपनी नज़रों में गुनहगार न होते, क्यूँ कर
दिल ही दुश्मन हैं मुख़ालिफ़ के गवाहों की तरह
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
बस तेरी याद के साये हैं पनाहों की तरह
तुम छुपा लो मुझे, ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह
जिनकी ख़ातिर कभी इल्ज़ाम उठाए, फ़ाकिर
वो भी पेश आए हैं इन्साफ़ के शाहों की तरह
ग़म बढ़े आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह