Jo Main Janti [2]
मन साजन ने हर लीना
और तन दुनिया ने छीना
भला कहो अब कैसे बाजे
बिना तार के बिना
जो मैं जानती बिसरत हैं सैंया
जो मैं जानती बिसरत हैं सैंया
घूँघटा में आग लगा देती
घूँघटा में आग लगा देती
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी
पिया प्यारे को अपने मना लेती
पिया प्यारे को अपने मना लेती
मेरे हार-सिंगार की रात गयी
पियू संग उमंग मेरी आज गयी
पियू संग उमंग मेरी आज गयी
घर आए ना मोरे साँवरिया
घर आए ना मोरे साँवरिया
मैं तो तन-मन उनपे ओ
मैं तो तन-मन उनपे लूटा देती
जो मैं जानती बिसरत हैं सैंया
घूँघटा में आग लगा देती
मोहे प्रीत की रीत ना भाई सखी
मैं बनके दुल्हन पछताई सखी
मैं बनके दुल्हन पछताई सखी
होती ना अगर दुनिया की शरम
होती ना अगर दुनिया की शरम
उन्हें भेज के पटियाँ ओ
उन्हें भेज के पटियाँ बुला लेती
जो मैं जानती बिसरत हैं सैंया
घूँघटा में आग लगा देती