Zara Si Aahat Hoti Hai Haqeeqat [Commentary]

KAIFI AZMI, MADAN MOHAN

मगर शाब मदन मोहन का संगीत
और कैफ़ी आज़मी की शायरी
Romance के मैदान में भी तो किसी से कम नहीं थी

ज़रा सी आहट होती है
तो दिल सोचता है
कही ये वो तो नही
कही ये वो तो नही कही ये वो तो नही
ज़रा सी आहट होती है
तो दिल सोचता है
कही ये वो तो नही
कही ये वो तो नही कही ये वो तो नही

छुप के सीने मे आआ
छुप के सीने मे कोई
जैसे सदा देता है
शाम से पहले दिया
दिल का जला देता है
है उसी की ये सदा
है उसी की ये अदा
कही ये वो तो नही
कही ये वो तो नही कही ये वो तो नही

शक्ल फिरती है हां
शक्ल फिरती है निगाहो
मे वोही प्यारी सी
मेरी नस-नस मे
मचलने लगी चिंगारी सी
छू गई जिस्म मेरा
किस के दामन की हवा
कही ये वो तो नही
कही ये वो तो नही कही ये वो तो नही
ज़रा सी आहट होती है
तो दिल सोचता है
कही ये वो तो नही
कही ये वो तो नही कही ये वो तो नही

नई नई ये वो नहीं है बल्कि अब जो आ रहा है वो कौन है

Curiosités sur la chanson Zara Si Aahat Hoti Hai Haqeeqat [Commentary] de Lata Mangeshkar

Qui a composé la chanson “Zara Si Aahat Hoti Hai Haqeeqat [Commentary]” de Lata Mangeshkar?
La chanson “Zara Si Aahat Hoti Hai Haqeeqat [Commentary]” de Lata Mangeshkar a été composée par KAIFI AZMI, MADAN MOHAN.

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