Jab Ek Qaza Se Guzro To

GULZAR, RAHUL DEV BURMAN

जब एक कज़ा से गुज़रो तो इक और कज़ा मिल जाती है
मरने की घड़ी मिलती है अगर जीने की सज़ा मिल जाती है

आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ

इस दर्द के बहते दरिया में हर ग़म है मरहम कोई नहीं
हर दर्द का ईसा मिलता है ईसा की मरियम कोई नहीं
साँसों की इजाज़त मिलती नहीं जीने की सज़ा मिल जाती है

आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ

मैं वक़्त का मुज़रिम हूँ लेकिन इस वक़्त ने क्या इंसाफ़ किया
जब तक जीते हो जलते रहो जल जाओ तो कहना माफ़ किया
जल जाए ज़रा सी चिंगारी तो और हवा मिल जाती है
जब एक कज़ा से गुज़रो तो इक और कज़ा मिल जाती है(आ आ आ)
मरने की घड़ी मिलती है अगर जीने की सज़ा मिल जाती है(आ आ आ)

Curiosités sur la chanson Jab Ek Qaza Se Guzro To de Mohammed Rafi

Qui a composé la chanson “Jab Ek Qaza Se Guzro To” de Mohammed Rafi?
La chanson “Jab Ek Qaza Se Guzro To” de Mohammed Rafi a été composée par GULZAR, RAHUL DEV BURMAN.

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